न जाने क्यों, बंधा सा महसूस करती हो,
कभी खुल कर क्यों नहीं जीती हो?
कभी खुद को, कभी गैरों को दोष देती हो,
क्यूँ किसी अदृश्य पिंजरे में कैद रहती हो?
कैसे करोगी ख्वाब पूरे, गर खुद से हार जाओगी?
सामने खुद के खड़ी, दूजे से क्या लड़ पाओगी?
वक्त पर अपने लिए, कैसे सही कर पाओगी?
बदली नहीं तो पिंजरे में, कैद ही रह जाओगी |
सुनहरा है तो क्या हुआ, है तो यह पिंजरा ही,
क्या अपने आप पिंजरे का दरवाज़ा खुलता है कभी?
समझे न कोई और तो क्या, घुट घुट युंही मर जाओगी?
करलो इकठ्ठा हिम्मत वरना, बाद में पछताओगी |
गैरों की मर्ज़ी पर कब तक, आज़ादी ये छिनवाओगी?
जो पल बने हैं उड़ने को, वह बैठे ही क्यों गँवाओगी?
बस करलो तय क्या करना है, सब कुछ स्वयं कर पाओगी,
पिंजरे से बाहर जो निकलो, इबारत नयी गढ़ पाओगी |
कभी खुल कर क्यों नहीं जीती हो?
कभी खुद को, कभी गैरों को दोष देती हो,
क्यूँ किसी अदृश्य पिंजरे में कैद रहती हो?
कैसे करोगी ख्वाब पूरे, गर खुद से हार जाओगी?
सामने खुद के खड़ी, दूजे से क्या लड़ पाओगी?
वक्त पर अपने लिए, कैसे सही कर पाओगी?
बदली नहीं तो पिंजरे में, कैद ही रह जाओगी |
सुनहरा है तो क्या हुआ, है तो यह पिंजरा ही,
क्या अपने आप पिंजरे का दरवाज़ा खुलता है कभी?
समझे न कोई और तो क्या, घुट घुट युंही मर जाओगी?
करलो इकठ्ठा हिम्मत वरना, बाद में पछताओगी |
गैरों की मर्ज़ी पर कब तक, आज़ादी ये छिनवाओगी?
जो पल बने हैं उड़ने को, वह बैठे ही क्यों गँवाओगी?
बस करलो तय क्या करना है, सब कुछ स्वयं कर पाओगी,
पिंजरे से बाहर जो निकलो, इबारत नयी गढ़ पाओगी |
One of the best poems .
ReplyDeleteSo inspiring.
Keep on writing
Thank you, uncle :) I hope to keep doing so!
DeleteKya baat hai,
ReplyDeleteBahot hi lajawab, khoob likha hai :)
Dhanyavad :)
DeleteWaah! :)
ReplyDeleteThank you, Bharat :)
DeleteSo beautifully expressed!!
ReplyDeleteThank you :)
DeleteIt's very nice Shriya👌👌
ReplyDeleteThank you :)
Deleteअभिव्यक्ति अद्वितीय
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