अब दिन भर घर से बाहर रहकर खोल के नज़रें सोता है
शायद अकेले गुज़ारा वक़्त खाली मन टटोलता है
हर सफर और नया शहर नए रँगों में जब डुबोता है
अनजाने में न जाने दिमाग की कितनी खिड़कियाँ खोलता है
ना खुद से ना किसी और से बोलने को यह लफ्ज़ पिरोता है
कुछ समय से कुछ नहीं कहना ऐसा रस घोलता है
भटकने में इधर से उधर क्या घटा क्या बढ़ा नहीं तोलता है
मेरा मन मुझसे बस किसी खोज में रहने को बोलता है
Nice n very true lines
ReplyDeleteThank you :)
DeleteVery beautiful lyrical verse Shriya. Banjara mann
ReplyDeleteThank you :)
DeleteExcellent Lines with deep meaning. Keep it up. Stay blessed always
ReplyDeleteThank you :)
DeleteBeautifully written
ReplyDelete#alwaysafan
Thank you, Krishna :)
DeleteNiceeee Shriya :-)
ReplyDeleteThank you, Rakshitha :)
DeleteThat's really beautiful Shriya 😍
ReplyDeleteThank you, Deepak :)
DeleteVery true and lovely 😊
ReplyDeleteThank you, Vibhor :)
Delete